छत्तीसगढ़

भूमि घोटाला:जयसिंह अग्रवाल की सरपरस्ती में जमीन का खेल, वन भूमि से लेकर आदिवासी भूमि पर माफियाओं का कब्जा !

छत्तीसगढ़ में भूमि घोटालों का एक और बड़ा मामला उजागर हुआ है, जिसमें तत्कालीन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल की भूमिका संदेह के दायरे में है। आरोप है कि कोरबा में सरकारी, वन और आदिवासी भूमि तक में बड़ा खेल किया गया, जिससे राज्य के खजाने को करोड़ों का नुकसान हुआ।

राजनेताओं, बिल्डरों और माफियाओं का गठजोड़

रायपुर और बिलासपुर में लैंड यूज बदलकर कृषि भूमि को आवासीय और कमर्शियल में तब्दील करने का घोटाला सामने आया था, जिसमें एसडीएम की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुईं। यही खेला कोरबा में भी हुआ, जहां जयसिंह अग्रवाल के संरक्षण में भूमाफियाओं और बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए वन और आदिवासी भूमि का दुरुपयोग किया गया।

कोरबा शहर के कोसाबाड़ी में एक बिल्डर को लाभ पहुंचाने के लिए वन भूमि की रजिस्ट्री की गई, जिसमें झोलझाल किया गया। मुख्य सड़क की जगह रामपुर बस्ती की भूमि दिखाई गई और रजिस्ट्री की गई। यह सीधे तौर पर वन भूमि में कब्जा करने और सरकारी प्रक्रिया को धता बताने का मामला है। तत्कालीन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के कार्यकाल के दौरान जिन अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस घोटाले को अंजाम दिया, वे अब भी उन्हीं पदों पर जमे हुए हैं। मुख्यालय पटवारी और आरआई जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे ये लोग अभी भी सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। सुशासन की सरकार में भी इन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है, जिससे भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है।

जब तक इन अधिकारियों और कर्मचारियों को उनके पदों से नहीं हटाया जाएगा, तब तक ये भ्रष्टाचार जारी रहेगा और जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

 

एसडीएम ने कैसे दिया घोटाले को अंजाम समझिए

दरअसल, लैंड डायवर्सन का अधिकार एसडीएम के पास होता है। एसडीएम अपनी टीम से सर्वे के बाद उसका लैंड यूज तय करता है। एसडीएम के बाद फिर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग का काम प्रारंभ होता है। रायपुर, बिलासपुर के एक एसडीएम ने गजब का खेला किया। इक्का-दुक्का मामला होता तो शायद ये मामला उजागर भी नहीं होता। मगर सैकडां की संख्या में माफिया की तरह किया गया कारनामों की कलई अब धीरे-धीरे सामने आ रही है। सबसे बड़ी बात कि इस गड़बड़झालों से राज्य के खजाने को करोड़ों का नुकसान हुआ। जानकारों का कहना है कि जिस तरह के मामलों को अंजाम दिया गया है, उससे रजिस्ट्री और इंकम टैक्स को 500 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ होगा। वहीं करीब 10 हजार करोड़ की ब्लैकमनी, व्हाईट की गई। ये घोटाला तब हुआ है जब राजस्व व पंजीयन मंत्री जयसिंह अग्रवाल राज्य में थे।

आवासीय जमीन कृषि अगर एक बार किसी जमीन का लैंड यूज बदलकर कृषि से आवासीय या फिर कामर्सियल हो गया तो फिर ये कतई संभव नहीं कि उसे फिर से लैंड यूज बदलकर कृषि कर दिया जाए। वो भी एकाध केस नहीं, रायपुर, बिलासपुर में 100 से अधिक भूखंडों का लैंड यूज बदल दिया गया। जाहिर है, लैंड यूज आम आदमी नहीं बदलवाता। बडे़ रसूखदार लोग या फिर राजनेता या बिल्डर और भूमाफिया ही एकड़ में बड़े भूखंड खरीदे रहते हैं। और इस केस में वे लोग ही एसडीएम के जरिये इस खेला को अंजाम दिए।

मनी लॉड्रिंग कृषि जमीन की तुलना में आवासीय और कामर्सियल लैंड का सरकारी रेट दस गुना अधिक रहता है। मसलन, कृषि भूमि का रेट अगर 300 रुपए फुट होगा तो आवासीय और कामर्सियल का 3000 फुट से भी अधिक। आवासीय को अगर कृषि भूमि में एसडीएम ने चेंज कर दिया तो रजिस्ट्री 300 रुपए के रेट से होगा। इससे राज्य सरकार और इंकम टैक्स का नुकसान होता है। क्योंकि, रजिस्ट्री 300 के रेट से होगा ही एक नंबर में 300 रुपए के हिसाब से विक्रेता को देना होगा। बाकी पैसा कैश में। इससे बड़े राजनेताओं, भूमाफियाओं और बिल्डरों का ब्लैकमनी व्हाइट हो गया। उपर से इंकम टैक्स को नुकसान हुआ सो अलग। अगर आवासीय और कामर्सियल रेट से जमीन की रजिस्ट्री होगी तो रजिस्ट्री विभाग को दस गुना अधिक पैसे मिले होते, वहीं इंकम टैक्स विभाग को भी उसी हिसाब से टैक्स मिला होता।

पांच साल की जांच राज्य सरकार सिर्फ रायपुर और बिलासपुर में पिछले पांच साल के लैंड यूज चेंज की जांच करा ले तो जानकारों का दावा है कि अब तक का सबसे बड़ा लैंड स्केम सामने आएगा। इसमें एसडीएम, तहसीलदार से लेकर बड़े राजनेता, नौकरशाह, भूमाफिया और बिल्डर लपेटे में आएंगे। क्योंकि, बहती गंगा में इन लोगों ने खूब डूबकी लगाई है।

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